Sunday, February 6, 2011

मैं कागज़ की कश्ती ,तू बारिश का पानी ....

that's what i wrote in hindi creative writing competition .....unedited

मैं कागज़ की कश्ती ,तू  बारिश का पानी ....
जुड़ के भी है जुदा जुदा अपनी ये कहानी |

कभी डूब जाता हूँ तेरे  इस प्यार में ,
कभी छू लेता हूँ किनारा तेरे  इस प्यार में |

तुझसे ही है मेरी ये ज़िन्दगी ,
बिन तेरे है मुझमे कुछ कमी |

बिन तेरे आँखों में समाई है सूखी सूखी सी कुछ नमी ,
नाखुश सी है बिन तेरे मेरी हर ख़ुशी |



मैं हूँ तेरी पलखें  और तू उनकी नमी ,
जुड़ के भी है जुदा जुदा अपनी ये ज़िन्दगी |

ख़ुशी में तू है और गम में तू है ,
मेरी हर याद और मेरी हर आस में तू है |

दूर जाने के लिए आती पास तू है ,
करीब रहके भी मेरी प्यास तू है |




सागर हूँ मैं तेरा और उसकी लहर तू है ,
बुझ के भी ना भुझी वो प्यास तू है |

दिल में समा जाने के बाद भी ना जाने दूर क्यूँ है ,
दिल में समा जाने के बाद भी ना जाने मेरी धडकनों से खफा क्यूँ |

रह रह के मेरे पास आती  है ,
आके ना जाने फिर क्यूँ चली जाती है|

ना जाने कहाँ  खो जाती है ,
ना जाने क्यूँ रुला जाती है |

जितना पास तू आती है उतना ही दूर फिर चली जाती है ,
रह रह के ना जाने क्यूँ इस दिल को तेरी याद सताती है |



यादों के पन्नो पे मेरे दिल की कलम से लिखे गए अलफ़ाज़ तुम हो ,
शायद इसीलिए ये पन्ने कुछ नम है |

मेरे दिल के दिए में पनपती यादों की लौ की रौशनी तुम हो 
शायद इसीलिए ये यादों की लौ कुछ कम है , कुछ नम है |

मीठी यादों से खिली मेरे लबो पे खिली मुस्कराहट तुम हो ,
पर भीगी भीगी सी कुछ गुमसुम और कुछ उदास तुम हो |

यादों की परछाई बनकर चली आती हो तुम ,
कुछ देर मेरे चेहरे को सजा के ना जाने क्यूँ भीग जातिहो तुम |

हर बात में याद आ जाती हो तुम ,
कुछ पल खिलके ना जाने कहाँ बह जाती हो तुम |


मेरी हर रात की सुबह हो तुम,
मेरी हर सुबह की शाम  हो तुम |

जुड़ के भी ना जाने क्यूँ जुदा हो तुम,
मेरे मुस्कुराते आंसूओ की वजह हो तुम |

ना जाने कहाँ रहते हुए भी मेरे पास हो तुम,
बंद आँखों में पास होते हुए भी ना जाने क्यूँ खुली आँखों का ख्वाब हो तुम |



तुझे पाके मैं प्यार से ही प्यार कर बैठा,
तेरे आने से मैं खुशियों से प्यार कर बैठा |

बना लिया तुझे ही अपने दिल की हर दुआ ,
बना लिया तुझे ही अपना खुदा |

मुस्कुराहटों में मुस्कुराने लगी थी तुम ,
साँसों में खुशबुओं की तरह समा गयी थी तुम |

पर 

तुझे खोकर मैं हर प्यार से इनकार प्यार बैठा ,
हर गम और हर आंसुओं से प्यार कर बैठा |
तू ही है अबभी मेरे दिल की दुआ,
पर अब ना रहा कोई रब और ना ही कोई खुदा |

मुस्कुराहटों की नमी बन गयी हो तुम,
साँसों से ना जाने क्यूँ खफा हो गयी हो तुम 





"तुझे मैं अपने रब से भी जादा प्यार किया ,
इसीलिए शायद उससे देखा ना गया ,
इसिलए शायद उससे रहा ना गया ,
शायद इसीलिए तुझे अपने पास बुलार दी है मुझे जीने की ये सजा |"

पर तुझको ऐ रब मैं बता दू --
""चाहे तू कर ले उससे कितना भी जुदा,
चाहे बढ़ा दे कितनी भी दूरियाँ,
छह रह तू कितना भी खफा ,
यादें ना मेरी धुंधली होंगी ,
मेरी आँखों में चमक अब भी रहेगी,
मेरी मोहब्बत ना कम होगी |""